Acharya Ramchandra Shukla ka Jeevan Parichay- अगर आप आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय कक्षा 10 & 12 के बारे में जानना चाहते है, तो आप बिल्कुल सही जगह पर आये है।
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बोर्ड के परीक्षाएं निकट आ रही है ऐसे में हमने 10th और 12th के छात्रों के सहायता के लिए यह पोस्ट तैयार किया गया है। जो आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय कक्षा 10 और 12 के छात्रों के लिए अनुकूल है।आप किसी भी class के student है आप Ramchandra shukla ka jivan Parichay को कही भी प्रयोग कर सकते है। तो चलिए जानते है aacharya ramchandra shukla ki jivani के विषय और उनके रचनाओं के बारे में।
Acharya Ramchandra Shukla ka Jeevan Parichay (जीवन परिचय)
हिन्दी के महान प्रतिभाशाली साहित्यकार आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जन्म (कक्षा 10 राजीव प्रकाशन के आधार पर ) 4 अक्टूबर, 1884 ई0 को बस्ती जिले के अगोना नामक ग्राम (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। इनके पिता का नाम चन्द्रबली शुक्ल था।
इनके पिता जी सुपरवाइजर कानूनगो थे। रामचंद्र जी ने high school एंट्रेंस की परीक्षा मिर्ज़ापुर जिले के मिशन स्कूल से उत्तीर्ण किया था।
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आचार्य जी का स्कूली शिक्षा सही नहीं थी। गणित में कमजोर होने के कारण इनकी शिक्षा आगे नहीं बढ़ सकी। इन्होंने ने बाद में इण्टर की परीक्षा के लिए कायस्थ पाठशाला, इलाहाबाद (वर्तमान प्रयागराज) में प्रवेश लिया, परन्तु आखिरी परीक्षा देने से पहले ही इनका विद्यालय छूट गया।
रामचंद्र जी ने मिर्ज़ापुर के न्यायालय में नौकरी भी किया, परन्तु शुक्ल जी को वह पसंद नहीं था। जिसके कारण उन्होंने वह नौकरी छोड़ दिया। बाद में आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी मिर्ज़ापुर के मिशन स्कूल में चित्रकला के अध्यापक हो गए।
इसी बीच स्वाध्याय से आचार्य रचमाचन्द्र शुक्ल जी ने हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, बँगला आदि भाषाओं का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया था। उसके बाद इन्होने पत्र-पत्रिकाओं में लिखने का कार्य शुरू कर लिया था।
कुछ समय बाद इनकी नियुक्ति काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में हिंदी के प्राध्यापक पद पर हो गयी। बाबू श्यामसुंदर दास के अवकाश प्राप्त करने के बाद शुक्लजी ने हिंदी विभाग के अध्यक्ष पद पर भी रहे। इसी पद पर कार्य करते हुए आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी का 2 फरवरी, 1941 ई0 में देहांत हो गया।
हिन्दी निबंध को नया आयाम देकर उसे ठोस धरातल पर प्रतिष्ठित करने वाले रामचंद्र जी हिंदी साहित्य के मूर्धन्य आलोचक, श्रेष्ठ निबंधकार, निष्पक्ष इतिहासकार, महान शैलीकार एवं युग-प्रवर्तक आचार्य थे। इन्होंने सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक दोनों प्रकार की आलोचनाएँ लिखी।
इनकी विद्धता के कारण ही 'हिन्दी शब्द सागर' के संपादन कार्य में सहयोग के लिए आचार्य जी को आमंत्रित किया गया। इन्होंने 19 वर्षों तक 'काशी नागरी प्रचारिणी' पत्रिका का संपादन भी किया। इन्होंने अंग्रेजी और बँगला में कुछ अनुवाद भी किये।
आलोचना इनका मुख्य विषय और सबसे प्रिय विषय भी था। इन्होने 'हिन्दी साहित्य का इतिहास' लिखकर इतिहास लेखन की परम्परा का सूत्रपात किया।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल का संक्षिप्त जीवन परिचय।
याद करने योग्य संक्षिप्त परिचय | |
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जन्म | 4 अक्टूबर, 1884 ई० |
जन्म-स्थान | अगोना (बस्ती), उत्तर प्रदेश |
पिता | चन्द्रबली शुक्ल |
मृत्यु | 2 फरवरी, 1941 ई० |
भाषा | खड़ीबोली |
Acharya Ramchandra shukla ka sahityik Parichay (साहित्यिक परिचय)
आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी उच्चकोटि के निबंधकार ही नहीं बल्कि युग-प्रवर्तक आलोचक भी थे। इनकी कृतियाँ इस प्रकार है।
निबंध-संग्रह - 'चिंतामणि' भाग 1 और 2 तथा 'विचार वीथी'।
इतिहास- 'हिन्दी साहित्य का इतिहास' (hindi sahitya ka itihas acharya ramchandra shukla द्वारा रचित प्रसिद्ध रचनाओं में से एक है।)
आलोचना- 'सूरदास', 'रसमीमांस', 'त्रिवेणी'।
संपादन- 'जायसी ग्रन्थावली', 'तुलसी ग्रंथावली', 'हिन्दी शब्द सागर', भ्रमरगीत सार', 'काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिका', 'आनंद कादम्बिनी'।
आचार्य रामचंद्र जी अन्य रचनाएँ। Acharya Ramchandra Shukla In Hindi
आपने ऊपर Acharya Ramchandra shukla ka jeevan parichay में मुख्य रचनाओं के बारे में जाना है, जिसे अक्सर कक्षा 10 और 12 के परीक्षाओं में पूछा जाता है। लेकिन उन रचनाओं के अतिरिक्त रामचंद्र जी ने और भी रचनाएँ किया है। जिनके बारे में हम आगे जनाए वाले है।
इनके अतिरिक्त शुक्ल जी ने कहानी (ग्यारह वर्ष का समय), काव्यकृति (अभिमन्यु-वध) की रचना तथा अन्य भाषाओं के कई ग्रंथो का हिंदी में अनुवाद किया है। जिनमे 'मेगस्थनीज का भारतवर्षीय विवरण', 'आदर्श जीवन', 'कल्पना का आनंद ', 'विश्व प्रपज्च', 'बुध्दचरित'(काव्य), स्फुट अनुवाद, शशांक आदि प्रमुख है।
शुक्ल जी भाषा संस्कृतनिष्ठ, शुद्ध तथा परिमार्जित खड़ीबोली है। परिष्कृत साहित्यिक भाषा में संस्कृत के शब्दों का प्रयोग होने पर भी उसमे बोधगम्यता सर्वत्र विद्यमान है। कहीं-कहीं आवश्यकतानुसार उर्दू, फ़ारसी, और अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग भी देखने को मिलता है।
Acharya ramchandra shukla ji ने मुहावरे और लोकोक्तियों का प्रयोग करके भाषा को अधिक व्यंजनापूर्ण, प्रभावपूर्ण एवं व्यावहारिक बनाने का भरपूर प्रयास किया किया है।
शुक्लजी की भाषा-शैली गठी हुई है, उसमे व्यर्थ का एक भी शब्द नहीं होता है। कम-से-कम शब्दों में अधिक विचार व्यक्त कर देना इनकी विशेषता है। अवसर के अनुसार इन्होंने वर्णात्मक, विवेचनात्मक, भावात्मक तथा व्याख्यात्मक शैली का प्रयोग किया है। हास्य-व्यंग प्रधान शैली प्रयोग के लिए भी शुक्लजी प्रसिद्ध है।
कक्षा 10 में रामचंद्र द्वारा 'मित्रता' नामक निबंध रामचंद्र जी के प्रसिद्ध निबंध संग्रह 'चिंतामणि' से संकलित किया गया है। इस निबंध में अच्छे मित्र के गुण की पहचान तथा मित्रता करने की इच्छा और आवश्यकता आदि पर सुन्दर विश्लेषणात्मक वर्णन किया गया है। इसके साथ ही कुसंग के दुष्परिणामों का विशद विवेचन किया गया है।
दोस्तों इस लेख में आपने acharya ramchandra shukla ka jivan parichay hindi main जाना है। यहाँ पर आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय इस प्रकार दर्शाया गया है, जिसे आप class 10th और 12th के परीक्षाओं में भी भलीभाँति लिख सकते है।
Acharya Ramchandra shukla ka jeevan parichay सम्बंधित महत्वपूर्ण प्रश्न
Q.1- रामचंद्र शुक्ल जी का जन्म कहां और कब हुआ था?
Ans- आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जन्म बस्ती जिला में अगोना नामक ग्राम में 4 अक्टूबर 1884 ई0 में हुआ था।
Q.2- रामचंद्र शुक्ल का देहांत कब हुआ था?
Ans- आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जी का देहांत 2 फ़रवरी 1941 ई0 में वाराणसी में हुआ था।
Q.3- आचार्य रामचंद्र शुक्ल के माता का क्या नाम था?
Ans- आचार्य रामचंद्र शुक्ल के माता का नाम विभाषी था।
आपने क्या सीखा ?
आपने इस लेख के माध्यम से Acharya Ramchandra shukla ka jeevan parichay के बारे में जानकारी प्राप्त किया है। यहाँ पर इनके जीवन से संबंधित सभी महत्वपूर्ण घटनाओ और जीवन के परिस्थितियों समेत इनके साहित्यिक परिचय पर प्रकाश डाला गया है। मुझे आशा है कि आपको Ramchandra shukla ka jivan parichay काफी पसंद आयी होगी। आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय कक्षा 10 & 12 के आधार पर लिखा गया है, अतः आप इसे परीक्षा में भी भलीभांति अंकित कर सकते है।
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